Today's Bible Reading In Hindi - 1 कुरिन्थियों 1:26

अभिवादन और प्रस्तुति 

मसीह में हे मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, आपको हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के पवित्र नाम में शांति, आनंद और अनुग्रह मिले। मसीह जो परमेश्वर की एकमात्र सच्ची धार्मिकता का चुना हुआ पात्र और सारे संसार का इकलौता उद्धार का मार्ग है, विश्वास से पवित्र और धर्मी ठहराए हुए लोगों में आपको नमस्कार कहता हु। उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे।

प्रिय भाइयों और बहनों, आज हम एक अत्यंत महत्वपूर्ण वचन पर मनन करने वाले हैं। यह वचन हमें न केवल हमारे विश्वास की जड़ों की याद दिलाता है, बल्कि हमारे जीवन में नम्रता और परमेश्वर की अनुग्रह पर निर्भरता की ओर भी ले जाता है। 

हमारा आज का Today's Bible Reading In Hindi का वचन है 1 कुरिन्थियों 1:26, यह वचन हमारे लिए एक दर्पण है, जो हमें दिखाता है कि हमें घमंड नहीं करना चाहिए, बल्कि नम्र होकर उस अनुग्रह के लिए धन्यवाद करना चाहिए जिसने हमें चुना और बदल दिया। तो चलिए अब हम इस वचन को थोड़ा गहराई से समझते हैं।

Today's Bible Reading In Hindi - 1 कुरिन्थियों 1:26

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शीर्षक: न बुद्धिमान, न सामर्थी, न ज्ञानी परन्तु परमेश्वर के द्वारा चुने हुए जन 

पुस्तक : 1 कुरिन्थियों

लेखक : पौलूस 

अध्याय : 1

वचन : 26

हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। 1 कुरिन्थियों 1:26

 

1 कुरिन्थियों 1:26 - संदर्भ

यह वचन 1 कुरिन्थियों 1:26 का हिस्सा है, जहाँ प्रेरित पौलुस कुरिन्थुस की कलीसिया को संबोधित कर रहा है। कुरिन्थुस उस समय एक समृद्ध, शिक्षित और व्यापारिक केंद्र था। वहाँ बड़े-बड़े दार्शनिक, विद्वान और अमीर व्यापारी रहते थे। ऐसे शहर में यह सोचना स्वाभाविक था कि परमेश्वर का संदेश केवल ऊँचे घरानों या विद्वानों के लिए होगा। लेकिन पौलुस ने उनके इस भ्रम को तोड़ा और सच्चाई बताई।

उसने समझाया कि मसीही बुलाहट में ज़्यादातर लोग साधारण जीवन से आए थे। वे न तो बहुत शिक्षित थे, न ताक़तवर और न ही कुलीन परिवारों से। फिर भी वे बुलाए गए और उनके जीवन बदल दिए गए। इससे यह सिद्ध हुआ कि सुसमाचार की शक्ति मानवीय बुद्धि या पद पर नहीं, बल्कि परमेश्वर के अनुग्रह पर आधारित है।

पौलुस का मक़सद यह था कि कलीसिया अपने बुलाए जाने को देखकर नम्र बने। जो लोग पहले छोटे और कमज़ोर समझे जाते थे, उन्हीं को चुनकर परमेश्वर ने संसार की बुद्धि और सामर्थ को ललकारा। यह सुसमाचार का मूल स्वभाव है — कि परमेश्वर वहीं काम करता है जहाँ लोग सोचते हैं कि कुछ नहीं हो सकता, और उन साधनों से अपनी महिमा दिखाता है जिन्हें दुनिया तुच्छ समझती है।

इस वचन का संदर्भ हमें यह याद दिलाता है कि मसीही विश्वास मानवीय योग्यता या सामाजिक दर्जे पर खड़ा नहीं है। इसकी जड़ परमेश्वर के अनुग्रह में है, और उसकी योजना अक्सर दुनिया की अपेक्षाओं से उलटी होती है। यही कारण है कि पौलुस कुरिन्थुस की मंडली को कहता है, “अपने बुलाए जाने को देखो,” ताकि वे समझें कि उनके जीवन में जो भी हुआ, वह परमेश्वर की ही शक्ति और योजना का फल है।

1 कुरिन्थियों 1:26 - टिप्पणी

हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को सोचो — यानी “तुम अपने बुलाए जाने को देखो।” यह पौलुस की तरफ़ से एक आग्रह है: ज़रा अपने आप पर और अपनी कलीसिया पर नज़र डालो और सोचो कि किस तरह के लोग मसीह के बुलावे का हिस्सा बने। यह केवल किसी प्रचारक या नेता की बात नहीं, बल्कि पूरी कलीसिया के लोगों की बात है — वे लोग जो परमेश्वर के अनुग्रह से बुलाए गए हैं। पौलुस चाहता है कि लोग बाहरी दिखावट या बुद्धि के नाम पर घमंड न करें, बल्कि समझें कि स्वाभाविक तौर पर किस तरह के लोग यीशु मसीह से जुड़ते आए हैं। “देखो” शब्द कभी आदेश के रूप में है — “ध्यान से देखो,” और कभी याद दिलाने जैसा है — “तुम इसे जानते हो।” लेकिन मूल संदेश यही है: दूसरों की परिस्थिति को देखकर परमेश्वर की अद्भुत योजना को समझना।

कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान — यानी दुनिया की नज़रों में बहुत से विद्वान या दार्शनिक इस बुलाहट में शामिल नहीं हुए। कुरिन्थ नगर विद्या और दर्शन का केंद्र था, पर कलीसिया में ज़्यादातर साधारण और कम पढ़े-लिखे लोग थे। इसका अर्थ यह नहीं कि किसी बुद्धिमान ने विश्वास नहीं किया। कुछ ने किया था, जैसे निकुदेमुस, जो यहूदियों का प्रमुख शिक्षक था, और गमलियेल, जो व्यवस्था का बड़ा विद्वान था। उसी तरह, अपोल्लोस, जो शास्त्रों में निपुण और अलेक्ज़ान्द्रिया का विद्वान था, वह भी प्रभु का सेवक बना। लेकिन उनकी संख्या बहुत कम थी। असल बात यह है कि सुसमाचार की शक्ति मानवीय बुद्धि या तर्क पर नहीं, बल्कि परमेश्वर की योजना और आत्मिक सामर्थ पर निर्भर थी।

और न बहुत सामर्थी — यानी जिनके पास पद, शक्ति और प्रभाव था, वे भी अधिक संख्या में बुलाए नहीं गए। “सामर्थी” से मतलब है राजनैतिक, सामाजिक या आर्थिक ओहदे वाले लोग। कुछ उदाहरण अवश्य मिलते हैं, जैसे एरास्तुस, जो कुरिन्थ नगर का कोषाध्यक्ष था; योसेफ अरिमथिया का, जो एक धनी और सम्मानित यहूदी नेता था; और कोर्नेलियुस, जो रोमी सेना का सूबेदार था। लेकिन कुल मिलाकर कलीसिया का अधिकांश हिस्सा साधारण और विनम्र लोगों से बना था। पौलुस का संदेश यही है कि परमेश्वर ने दुनिया की शक्ति और पद-प्रभुत्व पर भरोसा न करके अपने काम को पूरा किया। उसकी शक्ति संसार की शक्तियों से अलग है और अक्सर उनके विपरीत काम करती है।

और न बहुत कुलीन बुलाए गए — यानी ऊँचे खानदान और रसूखदार परिवारों के लोग भी आमतौर पर बुलाए नहीं गए। हाँ, बाइबल में कुछ नाम मिलते हैं — जैसे क्रिस्पुस और सोस्थनीस, जो आराधनालय के प्रधान थे, और कुछ अन्य लोग जो ऊँचे घरानों से थे — लेकिन यह सामान्य प्रवृत्ति नहीं थी। इससे एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्पष्ट होता है: धन, जन्म या शिक्षा न तो परमेश्वर के अनुग्रह में सहायक हैं और न ही रुकावट। परमेश्वर ने देखा कि कौन-सा मन उसकी ओर झुकता है, और उसने अक्सर साधारण, छोटे और पिछड़े लोगों को चुनकर अपनी महिमा प्रकट की।

1 कुरिन्थियों 1:26 - जीवन में लागू करना 

जब हम इस वचन को अपने जीवन में लागू करने की बात करते हैं, तो सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि परमेश्वर जिस तरह से हमें चुनता है, वह हमारी दुनिया की सोच से बिलकुल अलग है। हम अक्सर लोगों को उनके पढ़े-लिखे होने, धन, नाम या ओहदे से तौलते हैं। लेकिन परमेश्वर की नज़र उन पर जाती है जो साधारण और नम्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि चाहे हमारा समाज हमें कितना ही छोटा माने, परमेश्वर की योजना में हमारी भी जगह है। यही सोच हमें आत्मविश्वास देती है और दूसरों को नीचा समझने से रोकती है।

यह वचन यह भी याद दिलाता है कि हमारे जीवन में जो भी बदलाव हुआ है, वह हमारे बल पर नहीं, बल्कि परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ है। अगर हम आज बुराइयों से मुक्त होकर नया जीवन जी रहे हैं, तो यह हमारी योग्यता का नहीं बल्कि उसकी शक्ति का परिणाम है। जब यह सच्चाई दिल में उतर जाती है, तो घमंड की कोई जगह नहीं बचती। हर आशीष के लिए धन्यवाद करना और नम्र बने रहना ही इसका सही फल है।

हमारे लिए एक और शिक्षा यह है कि परमेश्वर अक्सर हमें उन्हीं कामों के लिए इस्तेमाल करना चाहता है जिनके लिए हम खुद को सबसे अयोग्य समझते हैं। जब हम यह सोचते हैं कि हमसे कुछ नहीं हो पाएगा, तब वही पल होता है जब परमेश्वर हमें अपने काम का साधन बनाता है। इसलिए अपने सीमित ज्ञान, संसाधनों या क्षमताओं से डरना नहीं चाहिए। विश्वास के साथ कदम बढ़ाने पर वही साधारण से साधारण व्यक्ति भी उसके हाथों में एक अद्भुत साधन बन सकता है।

अंततः, इस वचन को अपनाने का मतलब है कि हम लोगों को उनकी बाहरी स्थिति से न आंकें। जो छोटे और कमजोर दिखते हैं, वही परमेश्वर की नज़रों में सबसे क़ीमती हो सकते हैं। हमें अपनी कलीसिया, अपने परिवार और समाज में इस दृष्टिकोण से देखना है कि हर व्यक्ति परमेश्वर का बुलाया हुआ हो सकता है। जब यह दृष्टि दिल में आ जाती है, तो हम सबके साथ प्रेम और समानता से पेश आते हैं और दुनिया भी मसीह का प्रेम हमारे जीवन के द्वारा देख पाती है।

1 कुरिन्थियों 1:26 - प्रार्थना 

हे परमेश्वर,

आज की इस नई सुबह के लिए मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ। यह एक नया दिन है जो तेरे अनुग्रह और करुणा से मुझे मिला है। मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरी सांसें, मेरा जीवन और मेरा हर पल तेरे ही हाथ में है। मैं आभारी हूँ कि तूने मुझे एक और अवसर दिया है ताकि मैं तेरा धन्यवाद कर सकू और तेरी राह पर चल पाऊं।

प्रभु, मैं तुझसे यह प्रार्थना करता हूँ कि, मुझे वह दृष्टि दे जो पौलुस ने दिखायी — कि मेरा बुलाया जाना मेरी योग्यता या ताक़त से नहीं, बल्कि केवल तेरे अनुग्रह से है। जब मैं खुद को छोटा और अयोग्य महसूस करूँ, तब मुझे याद दिला कि यही मेरी ताक़त है, क्योंकि तू कमज़ोर को चुनकर अपना सामर्थ्य प्रकट करता है। मेरे मन में कभी घमंड न आए, और यदि आए तो बस इतना आए कि मैं तुझे जानता हूं, जैसा तूने कहा है। और हमेशा मुझमें नम्रता और धन्यवाद का भाव बना रहे।

हे करुणामयी प्रभु, मैं अपने परिवार और अपने प्रियजनों के लिए भी प्रार्थना करता हूँ। उन्हें स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रदान कर। उनके जीवन में तेरी शांति और तेरी देखभाल हर रोज़ बनी रहे। उन्हें भी यह समझ दे कि उनकी असली कीमत उनकी स्थिति या संपति में नहीं, बल्कि तेरे बुलाने में है। जब वे किसी कठिनाई या बीमारी में हों, तो हे चंगा करनेवाले प्रभु उन्हें चंगा कर और सदा तेरा हाथ थामे रहने की उन्हें ताक़त दे।

अंत में, हे प्रभु, मैं अपने पूरे जीवन को तेरे हाथ में सौंपता हूँ। मेरी सोच, मेरे शब्द और मेरे काम तेरी महिमा के लिए हों। जिस तरह तूने साधारण लोगों को चुनकर महान काम किया, वैसे ही मेरे जीवन से भी तेरी इच्छा पूरी हो। यीशु मसीह के नाम से मैं यह प्रार्थना करता हूँ। आमीन।


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