Today's Bible Reading in Hindi - यूहन्ना 16:33

अभिवादन और प्रस्तुति 

मसीह में मेरे प्रिय भाइयों और बहनों, प्रभु यीशु मसीह के अनमोल और पवित्र नाम में जो हमारी असल शांति का मूल है और जो विश्वविजेता है, उसके नाम में आप सबको नमस्कार, अनुग्रह और आशीर्वाद पहुंचे! आज का दिन हमारे लिए परमेश्वर का दिया हुआ अनमोल उपहार है, और हम आभारी हैं कि उसने हमें एक और सुबह दी है जिसमें हम उसके वचन पर मनन कर सकें। प्रार्थना है कि यह वचन आपके हृदय को शांति, साहस और आत्मिक शक्ति प्रदान करे।

आज का हमारा “Verse of the Day” का वचन यूहन्ना 16:33 है। यह पद प्रभु यीशु के उस गहरे और भावुक संवाद से लिया गया है, जो उन्होंने अपने शिष्यों से अंतिम भोज के बाद किया था। जब सब ओर से डर, असमंजस और आने वाले दुःख का माहौल था, तब यीशु ने अपने शिष्यों को एक ऐसा वचन दिया जो हर युग के विश्वासियों के लिए आशा और साहस का स्रोत है। उन्होंने कहा कि संसार में तुम्हें कष्ट तो होगा, लेकिन मुझमें तुम्हें शांति मिलेगी, क्योंकि मैंने संसार पर विजय पाई है। यह वचन केवल उस समय के शिष्यों के लिए नहीं था, बल्कि आज भी हर उस विश्वास करने वाले के लिए है जो जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों से गुजर रहा है। तो चलिए आज इस पर थोड़ी गहराए से मनन करते हैं।

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Today's Bible Reading in Hindi - यूहन्ना 16:33


शीर्षक: मसीह में शांति, संसार पर विजय

पुस्तक : यूहन्ना 

लेखक : यूहन्ना 

अध्याय : 16

वचन : 33

मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीन लिया है। यूहन्ना 16:33

यूहन्ना 16:33 - संदर्भ

यूहन्ना 16:33 का संदर्भ यीशु और उनके शिष्यों के बीच अंतिम भोज के बाद हुई गहरी आत्मिक बातचीत से जुड़ा है। यह पूरा संवाद यूहन्ना 13 से 17 अध्यायों तक फैला हुआ है, जिसे "अंतिम उपदेश" कहा जाता है। इस समय यीशु जानते थे कि उनकी गिरफ्तारी, क्रूस की मृत्यु और पुनरुत्थान का समय बहुत निकट है। वे यह भी समझते थे कि उनके जाने के बाद शिष्य अकेलापन, भय और असुरक्षा का अनुभव करेंगे।

शिष्य अब तक यह सोचते रहे थे कि यीशु उनके साथ रहकर इस्राएल को मुक्त करेंगे और परमेश्वर का राज्य स्थापित करेंगे। लेकिन जब यीशु ने अपने जाने और दुख उठाने की बात की, तो वे गहरे दुःख और भ्रम में पड़ गए। उन्हें लगा कि उनकी सारी आशाएँ टूट रही हैं। इसी असमंजस और भय के बीच यीशु ने उन्हें तैयार करने के लिए यह संवाद किया।

यीशु ने उन्हें सचेत किया कि संसार उन्हें उसी तरह अस्वीकार करेगा जैसे उसने उन्हें अस्वीकार किया। वे सताए जाएंगे, आराधनालयों से निकाले जाएंगे, यहाँ तक कि उनकी हत्या को भी लोग धार्मिक सेवा समझेंगे। यह सुनकर शिष्य और अधिक विचलित हुए। लेकिन यीशु ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे अकेले नहीं होंगे, बल्कि पवित्र आत्मा उनके साथ होगा। पवित्र आत्मा उन्हें सिखाएगा, मार्गदर्शन करेगा और सत्य में स्थिर रखेगा।

इस पूरे प्रवचन का निष्कर्ष यीशु ने यूहन्ना 16:33 में दिया। यह एक तरह से अंतिम सार था—उन्होंने शिष्यों से कहा कि संसार में उन्हें कष्ट और सताव झेलना पड़ेगा, लेकिन उसी समय वे मसीह में शांति पाएंगे, क्योंकि यीशु ने पहले ही संसार पर विजय पा ली है। इस प्रकार यह पद उस ऐतिहासिक क्षण का प्रतिबिंब है जब यीशु अपने शिष्यों को उनके सबसे कठिन समय से पहले हिम्मत, आशा और शांति देने के लिए यह शक्तिशाली सत्य प्रकट करते हैं।

यूहन्ना 16:33 - टिप्पणी

मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं - यहाँ यीशु अपने शिष्यों को याद दिलाते हैं कि उन्होंने अब तक जो कुछ भी कहा, वह केवल ज्ञान या जानकारी देने के लिए नहीं था, बल्कि एक गहरे उद्देश्य से था। ये सारी बातें उनके विदाई संदेश का हिस्सा थीं—उनके संसार से विदा होने की बात, पवित्र आत्मा के आने का वादा, उनके पुनरुत्थान की आशा, पिता के द्वारा शिष्यों की प्रार्थनाओं के सुने जाने की गारंटी, और साथ ही उन कठिन समयों का संकेत जो उनके शिष्यों पर आने वाले थे। इस पूरे संदर्भ का सार यही था कि शिष्य आने वाले तूफ़ानों के बीच भी डगमगाएँ नहीं, बल्कि उन्हें पहले से पता रहे कि यह सब होना ही है।

कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले - यीशु यहाँ स्पष्ट करते हैं कि असली शांति केवल उन्हीं में है। यह शांति संसार से नहीं मिलती, न ही इंसान अपने धार्मिक कर्मों या प्रयासों से उसे प्राप्त कर सकता है। यह शांति एक गहरे स्तर की है, जो मसीह के साथ जुड़े रहने से आती है। उनके बलिदान, उनके लहू और उनकी धार्मिकता से ही यह शांति संभव है। जब इंसान मसीह के क्षमा और मेल-मिलाप को अनुभव करता है, तब उसके भीतर एक स्थिरता, ठहराव और आत्मिक संतुलन जन्म लेता है। यह वही शांति है जो बाहरी हालात से प्रभावित नहीं होती। चाहे कितनी भी आँधियाँ आएँ, विश्वासियों के भीतर यह शांति स्थायी बनी रहती है।

संसार में तुम्हें क्लेश होता है - यीशु किसी झूठी उम्मीद नहीं देते। वे साफ़ कहते हैं कि इस दुनिया में उनके अनुयायियों को दुख और सताव सहना ही पड़ेगा। इसका कारण यह है कि दुनिया और उसकी शक्तियाँ परमेश्वर के जनों के विरोध में खड़ी रहती हैं। यह दुख केवल एक अस्थायी सच्चाई नहीं, बल्कि विश्वासियों के जीवन की एक स्थायी परिस्थिति है। हालांकि यह कष्ट सज़ा के रूप में नहीं आता, बल्कि पिता की ओर से एक तरह का अनुशासन और सुधार होता है। इन मुश्किलों के ज़रिए विश्वासियों का विश्वास परखा जाता है, उनकी आत्मा मज़बूत होती है, और उन्हें आत्मिक तथा अनन्त भलाई के लिए तैयार किया जाता है। यह भी सच है कि जैसे ही यह जीवन समाप्त होता है, वैसे ही कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं।

परन्तु ढाढ़स बांधो - यहाँ यीशु का स्वर बदल जाता है। वे अपने शिष्यों को केवल दुखों की चेतावनी नहीं देते, बल्कि उनके बीच आशा की ज्योति भी जगाते हैं। “हिम्मत रखो”—यह कोई साधारण दिलासा नहीं है, बल्कि आत्मिक साहस का आह्वान है। इसका मतलब है कि विश्वासियों को निराशा में नहीं डूबना चाहिए, बल्कि अपने हृदय को ऊपर उठाकर प्रभु की प्रसन्नता में स्थिर रहना चाहिए। यही विश्वास की अनोखी पहचान है—कि दुख और आनंद साथ-साथ चल सकते हैं। डर और प्रेम, न्याय और दया, पाप और क्षमा—ये सब मिलकर उस आत्मिक अनुभव को जन्म देते हैं जिसे केवल मसीह के अनुयायी ही समझ सकते हैं।

मैं ने संसार को जीन लिया है - यह वाक्य सबसे गहरा और निर्णायक है। यीशु यहाँ भविष्य की विजय की बात नहीं कर रहे, बल्कि पहले से प्राप्त हुई विजय का ऐलान कर रहे हैं। वे कहते हैं, “मैंने संसार पर जय पाई है।” इस “संसार” में शैतान, पाप, बुराई, प्रलोभन, और इंसानों की विरोधी शक्तियाँ सब शामिल हैं। यीशु ने पहले ही इन सब पर जीत हासिल कर ली थी—अपने जीवन की पवित्रता से, अपने बलिदान से और अपने पुनरुत्थान की निश्चितता से। उनकी यह विजय केवल उनकी अपनी नहीं, बल्कि उनके शिष्यों की भी है। जैसे सैनिक अपने सेनापति की जीत में शामिल होते हैं, वैसे ही विश्वासियों की विजय भी मसीह की विजय से जुड़ी है।

अगर सरल शब्दों में कहूं तो यह पूरा पद विश्वासियों को दोहरी वास्तविकता दिखाता है। एक ओर है “दुनिया में कष्ट,” और दूसरी ओर है “मसीह में शांति।” यह दोनों बातें साथ-साथ चलती हैं। दुख निश्चित हैं, लेकिन उनसे भी बढ़कर शांति सुनिश्चित है। मसीह का संदेश यही है कि संघर्ष और आँधी के बीच भी उनके लोग न केवल टिके रहेंगे, बल्कि विजयी भी होंगे। उनकी विजय हमारी विजय है। इसलिए यह पद केवल चेतावनी नहीं, बल्कि एक गहरी सांत्वना, हिम्मत और आत्मिक ताक़त का स्रोत है।

यूहन्ना 16:33 - जीवन में लागू करना

इस वचन का सबसे पहला प्रभाव यह है कि जीवन की हर परिस्थिति में शांति केवल मसीह में ही मिल सकती है। लोग अक्सर बाहरी हालात में शांति खोजते हैं—धन, पद, सम्मान, या संबंधों में। लेकिन अनुभव यही बताता है कि ये चीज़ें अस्थायी हैं और इन्हें खोने का डर हमेशा मन को बेचैन करता है। यीशु कहते हैं कि असली शांति उन्हीं में है, क्योंकि वही पाप का समाधान लाए और परमेश्वर से मेल कराए। जब कोई मनुष्य यह समझ लेता है कि उसका जीवन मसीह के हाथों में सुरक्षित है, तब बाहर के तूफ़ान उसे अंदर से नहीं डिगा पाते।

यह भी सच है कि संसार में कष्ट और विरोध का सामना करना ही होगा। यह मसीही जीवन की राह का हिस्सा है। जब दानिय्येल को शेरों की मांद में डाला गया, तब वह डर से नहीं काँपा, क्योंकि उसके भीतर परमेश्वर की शांति थी। जब पौलुस और सीलास जेल में बंद किए गए, तो उन्होंने रात में स्तुतिगान किया, क्योंकि उनकी आत्मा उस शांति से भरी हुई थी जो मसीह देता है। जीवन की कठिनाइयाँ हमें तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि हमारे विश्वास को और परखने और मजबूत करने के लिए आती हैं।

इस वचन से यह भी शिक्षा मिलती है कि हिम्मत रखना विश्वास का हिस्सा है। मसीही जीवन केवल दुःख सहने का नाम नहीं, बल्कि कठिनाइयों के बीच भी हर्षित होने का बुलावा है। जब दाऊद ने गोलियत का सामना किया, तो उसने अपनी ताक़त पर भरोसा नहीं किया, बल्कि इस विश्वास पर टिका रहा कि युद्ध यहोवा का है। उसी तरह विश्वासियों को यह भरोसा रखना चाहिए कि चाहे हालात कितने भी विपरीत क्यों न हों, मसीह पहले ही जीत चुके हैं और उनकी विजय हमारी भी विजय है।

यीशु के इन शब्दों से यह भी स्पष्ट होता है कि उनका अनुयायी संसार के साथ पूरी तरह मेल नहीं खा सकता। जैसे मूसा ने मिस्र के सुख-सुविधाओं को ठुकराकर परमेश्वर की प्रजा के साथ कष्ट सहना चुना, वैसे ही हर मसीही को यह तय करना होता है कि वह किसकी ओर झुकेगा। दुनिया की नज़र में यह चुनाव मूर्खता लगता है, लेकिन परमेश्वर की दृष्टि में यही सच्ची बुद्धि और साहस है।

सबसे बढ़कर यह वचन हमें भविष्य की आशा देता है। संसार का कष्ट केवल थोड़े समय का है, लेकिन मसीह की शांति और विजय अनन्त है। प्रेरित योहन ने प्रकाशितवाक्य में बार-बार लिखा, “जो जय पाएगा,” उसे जीवन का मुकुट मिलेगा। इसका अर्थ यही है कि मसीह की विजय में बने रहकर हम न केवल आज की लड़ाई जीतते हैं, बल्कि अनन्त जीवन की विरासत भी पाते हैं।

इसलिए जीवन के हर संघर्ष, हर आँधी और हर निराशा के बीच यह वचन हमें पुकारता है कि हम डरें नहीं, बल्कि हिम्मत रखें। हमारी आँखें परिस्थितियों पर नहीं, बल्कि उस मसीह पर लगी रहें जिसने कहा, “मैंने संसार पर जय पाई है।” यही संदेश हमें हर दिन जीने के लिए ताक़त देता है और यही विश्वास हमें दुःखों से विजयी होकर निकलने वाला बनाता है।

यूहन्ना 16:33 - प्रार्थना

हे मेरे दयालु और करुणामयी स्वर्गीय पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मुझे एक ओर नई सुबह दी है। और मैं यह मानता हूं कि यह दिन तेरे ही अनुग्रह से मेरे जीवन में आज आया है। तेरे अनंत प्रेम और दया ने मुझे फिर से उठाया और सांस दी। प्रभु यीशु, मैं तेरे वचनों को याद करता हूँ कि तूने कहा, “मैंने ये बातें तुमसे इसलिए कहीं हैं कि तुम मुझमें शांति पाओ।” आज की इस सुबह मैं उस शांति को अपने हृदय में भर लेना चाहता हूँ।

प्रभु, जब मैं अपने जीवन की ओर देखता हूँ तो मुझे भी दुनिया की परेशानियाँ, जीवन की मुश्किलें और संघर्ष दिखाई देते हैं। पर मैं यह भी जानता हूं कि तूने पहले ही मुझे चेतावनी दी थी कि संसार में कष्ट होंगे। मैं स्वीकार करता हूँ कि कई बार मेरा मन डर जाता है, टूट जाता है और हिम्मत हारने लगती है। लेकिन आज मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू अपने वचन के अनुसार मुझे भीतर से मजबूत कर। मेरी आत्मा को अपनी शांति से भर दे। मुझे इस सच्चाई पर दृढ़ बना कि तू पहले ही संसार पर जय पा चुका है।

हे प्रभु, मैं अपने परिवार और अपने प्रियजनों को तेरे हाथों में सौंपता हूँ। उनकी सेहत, उनकी सुरक्षा और उनकी हर ज़रूरत की चिंता तुझे ही सौंपता हूँ। इस संसार के कष्ट और भय उन्हें घेर न लें, बल्कि तेरी शांति उनके घरों और दिलों में राज करे। जैसे तूने अपने शिष्यों को कहा, “हिम्मत रखो,” वैसे ही उन्हें हर दिन साहस और विश्वास दे। ऐसा न हो कि वे इन क्षणिक दुखों से पीछे मूड जाए और तुझे भूल जाए।

हे प्रभु यीशु, आज जब मैं इस दिन की शुरुआत कर रहा हूँ तो मैं तुझ पर अपनी नज़रें टिकाता हूँ। मुझे यह स्मरण दिला कि तू ही मेरी शांति है और तेरी विजय ही मेरी विजय है। मेरी आत्मा, मेरा घर और मेरा जीवन तेरे वचन की इस प्रतिज्ञा में स्थिर रहें। तेरे नाम की महिमा हो, अब और सदा तक।

आमीन।

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