Today's Bible Reading in Hindi - रोमियों 10:9

अभिवादन और प्रस्तुति 

मसीह में मेरे प्रिय भाइयों और बहनों तुम्हें हमारे प्रभु के नाम शांति और अनुग्रह मिले। तुम ने मसीह को अपने हृदय से कबूल कर मुंह से अंगीकार किया है वह प्रशंसा के योग्य हैं और आशा करता हूं कि अंत तक इसी में बने रहोगे। हमारा प्रभु जो हमारी धार्मिकता का मूल है, उसी की बढ़ाई युगानुयुग होती रहे। आज हम परमेश्वर के वचन से एक अनमोल सत्य पर मनन करने जा रहे हैं। हर दिन का आरंभ तभी अर्थपूर्ण बनता है जब हम अपने जीवन को परमेश्वर के वचन के प्रकाश में रखते हैं। इसलिए, आइए इस नए दिन को उनके हाथों में सौंपते हुए उनके जीवित वचन से कुछ सीखते हैं।

आज का Verse of the Day है रोमियों 10:9, जो हमें उद्धार के मूल और सीधे मार्ग की ओर ले जाता है। यह वचन न केवल विश्वास और स्वीकारोक्ति की गहराई को दिखाता है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाता है कि उद्धार कोई दूर या कठिन बात नहीं है, बल्कि बहुत ही निकट और सहज है। यह वचन हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर के सामने धर्मी ठहरने का मार्ग हमारे कर्मों या बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि हमारे हृदय में विश्वास करने और हमारे मुख से मसीह यीशु को प्रभु स्वीकार करने में है।

यह पद हमें सच्चे उद्धार के रहस्य को उजागर करता है। जब हम हृदय से मानते हैं कि परमेश्वर ने यीशु मसीह को मृतकों में से जिलाया और जब हम खुले तौर पर यीशु को प्रभु स्वीकार करते हैं, तब हम जीवन के सबसे बड़े उपहार उद्धार के सहभागी बनते हैं।

{tocify} $title={Table Of Content}

Today's Bible Reading in Hindi - रोमियों 10:9


शीर्षक : हृदय से विश्वास करो, मुँह से अंगीकार करो, और उद्धार पाओ

पुस्तक : रोमियों 10:9

लेखक : पौलूस 

अध्याय : 10

वचन : 9

रोमियों कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। रोमियों 10:9


रोमियों 10:9 - संदर्भ

रोमियों 10:9 का संदर्भ यह है कि उद्धार के लिए विश्वास और स्वीकारोक्ति दोनों आवश्यक हैं। यह वचन, रोमियों 10:9-10 के साथ मिलकर, यह सिखाता है कि मसीह में उद्धार केवल हृदय में विश्वास करने और मुख से यीशु को प्रभु स्वीकार करने से आता है, न कि किसी काम से। पौलुस यहाँ यह स्पष्ट करते हैं कि उद्धार का मार्ग सरल है, लेकिन गहरा और वास्तविक भी है। यह केवल किसी बाहरी कर्मकांड या परंपरा से नहीं, बल्कि हृदय की गहराई और जीवन की सच्चाई से जुड़ा हुआ है।

रोमियों अध्याय 10 में, प्रेरित पौलुस इस्राएल के लोगों को परमेश्वर के प्रति उनकी धार्मिकता की उत्सुकता के बारे में बताते हैं। पौलुस के अनुसार वे ईमानदार तो हैं, पर सही मार्ग पर नहीं हैं। उन्होंने परमेश्वर की धार्मिकता को पहचानने के बजाय अपनी खुद की धार्मिकता स्थापित करने की कोशिश की है। यही कारण है कि वे मसीह के द्वारा मिलने वाले उद्धार से चूक गए हैं। पौलुस यह दिखाना चाहते हैं कि मसीह ही व्यवस्था का अंत हैं, ताकि हर कोई जो उस पर विश्वास करे, वह धर्मी ठहर सके।

पद 1-4 में पौलुस बताते हैं कि इस्राएल के लोग उद्धार के मार्ग से इसलिए भटक गए क्योंकि वे अपने कर्मों और नियमों के आधार पर धार्मिकता पाने की कोशिश करते रहे। जबकि सच्चाई यह है कि केवल मसीह ही सच्ची धार्मिकता और उद्धार का स्रोत हैं। मसीह ही व्यवस्था की पूर्ति और अंत हैं, ताकि हर विश्वास करने वाले के लिए नया जीवन और धार्मिकता संभव हो सके।

पद 5-8 में पौलुस व्यवस्था और विश्वास के बीच का अंतर स्पष्ट करते हैं। व्यवस्था के माध्यम से धार्मिकता पाना असंभव है, क्योंकि कोई भी उसे पूरी तरह नहीं निभा सकता। लेकिन विश्वास के माध्यम से धार्मिकता पाना संभव है। विश्वास का वचन दूर नहीं है, बल्कि हमारे बहुत करीब है, हमारे मुंह में और हमारे हृदय में। इसका मतलब यह है कि परमेश्वर ने उद्धार का मार्ग इतना आसान बना दिया है कि हर कोई जो चाहे, उसे ग्रहण कर सकता है।

पद 9-10 इस अध्याय की पराकाष्ठा हैं। यहाँ दो मुख्य बातें सामने आती हैं। पहली है हृदय में विश्वास करना कि परमेश्वर ने प्रभु यीशु को मृतकों में से जिलाया है। यह विश्वास केवल ऐतिहासिक घटना को मान लेने भर का नहीं, बल्कि परमेश्वर की शक्ति और मसीह के उद्धार के कार्य को अपने जीवन में स्वीकार करना है। दूसरी है मुख से स्वीकार करना कि यीशु ही प्रभु हैं। यह स्वीकारोक्ति केवल शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन की दिशा और आचरण में भी प्रकट होती है।

इस प्रकार पौलुस यह जोर देते हैं कि उद्धार एक व्यक्तिगत और जीवित संबंध है। यह न तो केवल अंदर ही अंदर का विश्वास है, और न ही केवल बाहर का प्रदर्शन। यह दोनों का मेल है। हृदय में गहरा विश्वास और मुख से सच्ची स्वीकारोक्ति। फिर यही संयोजन मनुष्य के जीवन को बदलता है और उद्धार को वास्तविक बनाता है। यह पद हमें याद दिलाता है कि मसीह को प्रभु मानना और उनके पुनरुत्थान पर विश्वास करना ही उद्धार का केंद्र है। यह किसी नियम या कर्मकांड का विषय नहीं, बल्कि दिल के परिवर्तन और विश्वास की सच्चाई का परिणाम है।

रोमियों 10:9 - टिप्पणी 

कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे - यहाँ पौलुस विश्वास और उद्धार की शिक्षा को सबसे सीधे और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करते हैं। “मुँह से अंगीकार” का अर्थ केवल होंठों से कुछ कहना नहीं है, बल्कि पूरे हृदय और जीवन के साथ यह स्वीकार करना है कि यीशु ही एकमात्र प्रभु है। यह एक खुला और सार्वजनिक अंगीकार है, जो डर या छिपाव के बिना किया जाता है। शुरुआती कलीसिया में जब लोग बपतिस्मा लेते थे, तो यह स्वीकारोक्ति आवश्यक थी। यह किसी तरह की बाहरी रस्म नहीं, बल्कि अंदर के विश्वास का प्राकृतिक और आवश्यक परिणाम था। हृदय में जो सच्चाई है, वही मुँह से निकलती है। अगर मुँह से प्रभु यीशु को मानना केवल दिखावा हो और हृदय में सच्चाई न हो, तो वह कपट है। लेकिन अगर हृदय में विश्वास है तो उसका स्वाभाविक फल यह है कि मनुष्य सार्वजनिक रूप से यीशु का नाम ले और कहे—हाँ, वह मेरा प्रभु है।

वहीं "यीशु को प्रभु" जानकर यह वाक्यांश का गहरा अर्थ रखता है। यहाँ पौलुस केवल यह नहीं कहते कि यीशु एक महान गुरु है या एक भविष्यवक्ता है। वे कहते हैं कि वह प्रभु है। प्रभु कहने का मतलब है कि उसका हमारे जीवन पर पूरा अधिकार है। यह मानना कि वह न केवल एक उद्धारकर्ता है, बल्कि वही वह परमेश्वर का पुत्र है जिसे स्वर्ग से भेजा गया। उसके प्रभुत्व को मानना यह भी है कि हम उसकी आज्ञा के अधीन चलने के लिए तैयार हैं। यह वही अंगीकार है जिसे पौलुस और अन्य प्रेरितों ने अपने प्रचार में सबसे ज़्यादा ज़ोर देकर कहा। “यीशु ही प्रभु है” जो मसीही विश्वास का मूल वाक्य है। यह स्वीकारोक्ति तभी सच्ची हो सकती है जब हृदय में यह पक्का विश्वास हो कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया।

और अपने मन से विश्वास करे - पौलुस यह नहीं कहते कि केवल मन से अंगीकार कर लेना काफी है। हृदय से विश्वास करना भी जरूरी है। हृदय से अंगीकार करने का मतलब गहराई से, पूरे मन और आत्मा के साथ उस सच्चाई को पकड़ लेना। यह विश्वास केवल जानकारी या ऐतिहासिक तथ्य पर सहमति नहीं है, बल्कि एक व्यक्तिगत भरोसा है। जब इंसान दिल से मानता है तो उसका जीवन बदलता है। वह अंदर से नई उम्मीद और शक्ति पाता है। इस विश्वास का अर्थ यह है कि मनुष्य अपने उद्धार, धर्म और अनंत जीवन के लिए यीशु पर पूरी तरह से भरोसा करता है।

कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया - यीशु का पुनरुत्थान मसीही विश्वास का केंद्र है। अगर यीशु न जी उठता तो उसकी मृत्यु व्यर्थ होती। अगर वह कब्र में ही रह जाता, तो न तो पाप पर उसकी जीत साबित होती, न ही मृत्यु पर। लेकिन जब परमेश्वर ने उसे जिलाया, तब यह सिद्ध हो गया कि उसके बलिदान को परमेश्वर ने स्वीकार कर लिया है। इससे यह भी साबित हुआ कि वही मसीहा है, वही उद्धारकर्ता है और वही प्रभु है। उसके जी उठने से यह भी सुनिश्चित हुआ कि एक दिन हम भी जी उठेंगे। पौलुस का तर्क है कि जो हृदय से यीशु के पुनरुत्थान को मान लेता है, वही सच में यह अंगीकार कर सकता है कि यीशु ही प्रभु है।

तो तू निश्चय उद्धार पाएगा - यहाँ पौलुस बड़ी सरलता से उद्धार का मार्ग बताते हैं। उद्धार पाना कोई कठिन काम नहीं है, कोई भारी भरकम नियमों की लिस्ट पूरी करना नहीं है। बस दो बातें मनुष्य में होनी चाहिए: हृदय से विश्वास और मुँह से अंगीकार। लेकिन ये दोनों बातें एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। सच्चा विश्वास अंगीकार तक ले जाता है, और असली अंगीकार तभी संभव है जब हृदय में विश्वास हो। इन दोनों के मेल से उद्धार निश्चित है। उद्धार का मतलब है पाप और दंड से छुटकारा, परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप, और अनंत जीवन की आशा।

इस पूरे पद में पौलुस ने पुराना नियम (व्यवस्थाविवरण) का सहारा लिया है, जहाँ “मुँह” और “हृदय” दोनों का उल्लेख आता है। उन्होंने उसी क्रम का उपयोग किया है ताकि यह दिखा सकें कि विश्वास और अंगीकार एक साथ-साथ चलते हैं। जो एक दूसरे का प्रमाण हैं। पौलुस यह भी स्पष्ट करते हैं कि यह केवल सतही मान्यता नहीं है। यह गहरी सच्चाई है जिसमें मनुष्य अपने जीवन को प्रभु यीशु को समर्पित कर देता है। रोमियों 10:9 उद्धार की सबसे साफ़ और सरल परिभाषा हमें देता है। इसमें न कोई भारी बोझ है, न कोई उलझन। बस सच्चे मन से यह अंगीकार करना कि यीशु ही प्रभु है और हृदय से यह विश्वास करना कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया है। यही सुसमाचार का सार है। यही विश्वास मनुष्य को नया जीवन देता है और यही स्वीकारोक्ति मनुष्य को आशा और साहस देती है।

रोमियों 10:9 - जीवन में लागू करना

जब पौलुस यह कहते हैं कि मुँह से यीशु को प्रभु अंगीकार करना और हृदय से उसके पुनरुत्थान पर विश्वास करना एकमात्र उद्धार का मार्ग है, तो यह केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि मनुष्य के जीवन जीने का तरीका है। यह हमें यह याद दिलाता है कि विश्वास केवल अंदर छिपाकर रखने की चीज़ नहीं है। यह हमें बदलता है और हमें मजबूर करता है कि हम दुनिया के सामने भी खुलकर प्रभु यीशु का नाम लें। जब पतरस ने यह कहा, "तू ही मसीह है, जीवते परमेश्वर का पुत्र," तब उसने अपने हृदय का विश्वास सबके सामने व्यक्त किया। यही वह साहस है जिसे हर विश्वासी से माँगा जाता है। 

जीवन में कई बार हम डरते हैं कि अगर हम यीशु का नाम लेंगे तो लोग क्या सोचेंगे। कभी-कभी हमारा मज़ाक उड़ाया जाता है, कभी निंदा होती है, कभी सताव का सामना करना पड़ता है। परंतु यीशु ने कहा था कि जो मनुष्यों के सामने मेरा अंगीकार करेगा, मैं भी स्वर्ग में अपने पिता के सामने उसका अंगीकार करूँगा। इसका अर्थ यह है कि जब हम निडर होकर मसीह का इज़हार करते हैं, तब स्वर्ग में स्वयं यीशु हमारा नाम लेता है।

इस वचन का जीवन में अर्थ यह भी है कि सच्चा विश्वास केवल शब्दों में नहीं होना चाहिए, बल्कि हमारे पूरे जीवन में दिखना चाहिए। अगर हम कहते हैं कि यीशु ही प्रभु है, तो इसका मतलब है कि अब हमारा जीवन हमारे अपने नियमों से नहीं, बल्कि उसके आदेशों से चलेगा। पौलुस स्वयं इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। जिसने पहले कलीसिया को सताया, पर वही बाद में खुलेआम यीशु का प्रचार करने लगा, और यहाँ तक कि जेलों और विपत्तियों में भी उसने यह स्वीकार करना कभी नहीं छोड़ा कि यीशु ही प्रभु है।

यीशु का पुनरुत्थान हमारे विश्वास की नींव है। यह हमें बताता है कि क्रूस पर हमारे पापों का दाम चुका दिया गया है और अब हमें नई आशा दी गई है। मरियम मगदलीनी का उदाहरण ही ले लें। जब उसने खाली कब्र देखी और जी उठे प्रभु को पहचाना, तो कैसे उसका शोक आनन्द में बदल गया। उसने दौड़कर जाकर दूसरों को बताया कि प्रभु जी उठा है। यही पुनरुत्थान पर विश्वास है, जो इंसान को शोक से खुशी और डर से साहस में बदल देता है।

हमारे जीवन में यह वचन हमें चुनौती देता है कि क्या हमारा दिल सचमुच पुनरुत्थान पर विश्वास करता है। अगर हाँ, तो हमारा मुँह भी उस विश्वास की गवाही देगा। यह गवाही केवल शब्दों से ही नहीं, बल्कि कर्मों से भी दी जाती है। जब हम दूसरों से प्रेम करते हैं, क्षमा करते हैं, और धर्म के लिए कठिनाइयाँ सहते हैं, तब हम यह घोषित कर रहे होते हैं कि यीशु सचमुच प्रभु है।

राजा दाऊद ने जब अपने जीवन में गहराई के संकटों का सामना किया, तब भी उसने कहा, "यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी।" यह उसी प्रकार के हृदय का विश्वास है, जो बाहर आकर मुँह से गवाही बन जाता है। और दानिय्येल जब शेरों की मांद में डाला गया, तब भी उसने अपने विश्वास को नहीं छिपाया। उसका जीवन और उसकी गवाही यह दर्शाते हैं कि परमेश्वर की शक्ति मृत्यु पर भी भारी है।

यह वचन हमें एक सरल लेकिन गहन मार्ग दिखाता है। हृदय से विश्वास करना और मुँह से अंगीकार करना जो कुल मिलकर हमें उद्धार की ओर ले जाता हैं। जब यह हमारे जीवन में सच होता है, तो हम केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि औरों के लिए भी गवाही बन जाते हैं। तब हमारा हर दिन यह कहता है कि यीशु ही प्रभु है और वही जी उठा है। यही संदेश हमें सिखाता है कि सच्चा विश्वास कभी छिपा नहीं रह सकता, बल्कि वह हमेशा चमकता रहता है, उस दीपक की तरह जो अंधकार में चमकता है।

रोमियों 10:9 - प्रार्थना

हे मेरे स्वर्गीय पिता परमेश्वर,

आज इस सुबह के लिए मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ। हे पिता धन्यवाद कि तूने मुझे जीवन का एक और दिन दिया है, ताकि मैं तेरी दया और प्रेम का अनुभव कर सकूँ। सूरज की नई किरणों की तरह तूने मेरी आत्मा को भी नयी आशा दी है।

हे मेरे राजा प्रभु यीशु, मैं अपने हृदय से अंगीकार करता हूँ कि तू मरे हुओं में से जी उठा है और मैं अपने मुँह से स्वीकार करता हूँ कि तू ही मेरा प्रभु और राजा है। हे मसीह मेरी कमज़ोरियों और मेरे डर को तू दूर कर। मुझे साहस दे कि मैं केवल अपने दिल में ही नहीं, बल्कि अपने जीवन और अपने शब्दों में भी तेरा अंगीकार करूँ। मुझे ऐसा बना कि लोग मेरे जीवन को देखकर समझ सकें कि तू ही एकमात्र प्रभु है।

हे क्षमावान पिता, मैं अपने परिवार और अपने प्रियजनों को तेरे हाथों में सौंपता हूँ। उन्हें स्वास्थ्य दे, उन्हें हर बुरी बात से बचा, और उनकी आत्मा को भी सच्चे हृदय से तुझ पर विश्वास करने की ताकत दे। जैसे तूने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, वैसे ही हमारे जीवन के हर अंधकार में भी नयी रोशनी और नई आशा जगा। प्रभु, इस दिन के हर पल में तू हमारे साथ चल। मेरे परिवार को तेरी शांति और सुरक्षा का अनुभव हो। और जब हम डरें, तो तेरे पुनरुत्थान की शक्ति हमें याद दिलाए कि तू हमारे साथ है और कोई भी ताकत हमें तेरे प्रेम से अलग नहीं कर सकती।

मैं अत्यंत धन्यवादित हु कि हे यीशु तू मेरा प्रभु है और मैं तुझमें उद्धार पाया हुआ हूँ। मैं इस दिन को तेरे हाथों में समर्पित करता हूँ। तेरी इच्छा मेरे जीवन और मेरे घर में पूरी हो। तेरे सामर्थी और जीवित नाम में यह प्रार्थना करता हूँ। आमीन।


Post a Comment

Previous Post Next Post